शनिवार, फ़रवरी 23, 2013

चंद्रगिरि : भूरे सोने की पहाड़ियां

21-फरवरी-2013 19:32 IST
वाणिज्य फीचर                                                     अमित गुइन*
विश्व के कॉफी पारखियों को दिसंबर 2007  में केंद्रीय कॉफी अनुसंधान संस्थान (सीसीआरआई) ने नए किस्म की कॉफी के पौधे चंद्रगिरि के बीज से परिचित कराया था। तभी से 'भूरे सोने' की खुशबू और रंग ने विश्व के विभिन्न भागों के कॉफी प्रेमियों को अपने से बांध लिया  है। चंद्रगिरि  पौध जब भारत के कॉफी बागानों में व्यावसायिक उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया गया तो उनका अच्छा परिणाम निकला और इसके बीज की भारी मांग होने लगी।
    इसके बारे में प्रचलित लोक कथा कुछ इस प्रकार है कि लगभग चार सौ साल पहले एक युवा फकीर बाबा बुदान मक्का की यात्रा पर निकले। यात्रा से थक कर चूर होने के बाद वे सड़क के किनारे एक दुकान पर नाश्ते के लिए रूके। वहां उन्हें काले रंग का मीठा तरल पदार्थ एक छोटे कप में दिया गया। उसे पीते ही युवा फकीर में गजब की ताजगी आ गयी। उन्होंने उसे अपने देश ले जाने का निश्चय कर लिया। लेकिन उन्हें जानकारी मिली कि अरब के लोग अपने रहस्यों की कड़ाई से रक्षा करते हैं और स्थानीय कानून उसे अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देंगे। बाबा ने अरब के कॉफी के पौधे के सात बीज अपने कमर में अपने चोले के नीचे छिपा लिए। स्वदेश लौटने पर बाबा बुदान ने कर्नाटक की चंद्रगिरि  पहाड़ियों में बीज को बोया। आज वे सात बीज विभिन्न किस्मों में बदल गए हैं और एक देश में विश्व की तरह-तरह की कॉफी पैदा होने लगी है।
    चंद्रगिरि की झाड़ियां छोटी किंतु कॉफी की अन्य किस्मों कावेरी और सान रेमन की तुलना में घनी होती हैं। इसके पत्ते बड़े, मोटे और गहरे हरे रंग के होते हैं। कॉफी की यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले लंबे और मोटे बीज पैदा करती है।
    कॉफी उत्पादकों से इस किस्म के पैदाबार के बारे में बहुत उत्साहजनक जानकारी मिली है। इसकी अनुवांशिकी एकरूपता और शुरूआती पैदावार भी अच्छी होती है। इसके अलावा अधिकतर उत्पादक चंद्रगिरि  को अपने खेतों में खाली समय की भरपाई के लिए इस्तेमाल करते हैं।
    यह भी देखा गया है कि अगर खेती के उचित तरीके अपनाए जाएं तो कावेरी  एचडीटी और चंद्रगिरि  जैसी विभिन्न घनी झाड़ियों से उपज में कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता। चंद्रगिरि  की फलियां अच्छे किस्म की होती हैं और औसतन 70  प्रतिशत फलियां 'ए' स्तर की होती हैं, इनमें से 25-30 प्रतिशत एए स्तर की होती हैं। अन्य किस्मों की तुलना में 'ए' स्तर की फलियां 60-65 प्रतिशत होती हैं  जिनमें से 15-20 प्रतिशत एए स्तर की होती हैं।
अनुसंधानकर्ताओं को यह भी पता चला है कि चंद्रगिरि  में बीमारी अन्य किस्मों के मुकाबले बहुत देर से लगती है। इसके अलावा बीमारी की गंभीरता बहुत कम (5  प्रतिशत से भी कम) होती है। लेकिन कॉफी के पौधे के तनों में छिद्र करने वालो सफेद कीटों के मामले में चंद्रगिरि  भी अन्य किस्मों की तरह ही है। भारत और दक्षिण एशिया में ये कॉफी के सबसे खतरनाक कीट होते हैं। लेकिन उत्पादन की आदर्श परिस्थितियों यथा समुद्र से 1000 मीटर की ऊंचाई वाले खेतों में कीट लगने की घटनाएं कम होती है। ऐसा इसलिए होता है कि झाड़ियां बहुत घनी और डालियां चारों ओर फैली होती हैं, जिससे सफेद कीट मुख्य तने पर हमला नहीं कर पाते। कीट नियंत्रण के लिए संक्रमित पौधों को नष्ट करना आवश्यक है। कीट प्रबंधन के लिए अन्य उपायों में आवश्यकतानुसार 10 प्रतिशत चूने का उपयोग, फेरोमोन जालों का इस्तेमाल और तने को लपेटने आदि का काम किया जा सकता है।
(पीआईबी फीचर)
*लेखक स्वतंत्र पत्रकार है
लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और पसूका का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।
वी.कासोटिया/राजेन्द्र/चित्रदेव-45
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