बुधवार, फ़रवरी 20, 2013

2 दिवसय देशव्यापी हड़्ताल

सैन्ट्रल ट्रेड यूनियनों की 10 मांगो के चार्टर का समर्थन 
युनाईटेड फोरम आफ बैंक युनियन्स की २ दिवसय देशव्यापी हड़्ताल के आह्वान पर सरकारी क्षेत्र के सभी बैंक कर्मचारीयों तथा आफिसर्स ने २० एंव २१ फरवरी को हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया है । युनाईटेड फोरम आफ बैंक युनियन्स की और से बहुत से रोष प्रोग्राम निर्धारित किये गये हैं । 
युनाईटेड फोरम आफ बैंक युनियन्स ने आज केनरा बैंक, भारत नगर चौंक,  लुधियाना के सामने रोष रैली की । कामरेड सुदेश कुमार, चैयरमैन, पंजाब बैंक इम्प्लाईज फैडरेशन, कामरेड नरेश गौड़, कन्विनर, युनाईटेड फोरम आफ बैंक युनियन्स, कामरेड अशोक अवस्थी (पी.बी.ई.एफ), कामरेड गुल्शन चौहान, कामरेड राकेश खन्ना, कामरेड बलजिंद्र सिंह, कामरेड जे.पी.कालड़ा (ए.आई.बी.ओ.सी), कामरेड डी.सी.लांडरा (एन.सी.बी.ई), कामरेड के.एस.संधु, कामरेड गुरबचन सिंह, ((ए.आई.बी.ओ.ए) तथा कामरेड डी.पी.मौड़, महासचिव, ज्वाईंट काउंसिल आफ ट्रेड यूनियन्स  ने बैंक कर्मचारियों को संबोधित किया ।कर्मचारियों को संबोधित करते युनाईटेड फोरम के नेताओं ने कहा कि हड्ताल का आह्वान निम्नलिखित मुद्दों तथा मांगों को लेकर किया गया है:-
१) सैन्ट्रल ट्रेड यूनियनों की १० मांगो के चार्टर का समर्थन 
२) बढ़्ती हुई कीमतों को काबू करो
३) मजदूर विरोधी नितियों को रोको
४) बैंकिग क्षेत्र में सुधारों को बंद करो 
५) स्थाई कार्यों को बाहर से करवाना बंद करो 
६) बैंक कर्मचारियों के बकाया मुद्दों का निपटान करो 

आफिर्स तथा कर्मचारियों को संबोधित करते हुए युनाईटेड फारम आफ बैंक ईम्पलाइज़ के नेताओं ने कहा कि ट्रेड यूनियनों की ऐतिहासिक एकता से एक ही प्लेट्फार्म पर आने के साथ ही, सरकार तथा कार्पोरेट्स द्बारा किए जा रहे आक्रमण के विरुद्ध प्रतिरोध करने के लिए नई सम्भावनाओं का रास्ता खुल गया है । खाद्द पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं । अर्थ-व्यवस्था ठ्प है यह उस संकट का द्दोतक है जिससे राष्ट्र घिर गया है । कीमतों को बढ़्ने से रोकने, आर्थिक मंदी को रोकने, गरीबी को दूर करने और काम के नुकसान को सीमित करने के लिए सरकार के पास कोई नीति नहीं है । सरकार की आर्थिक नितियों को लागु करने की होड़ में राजनीतिक और आर्थिक संकट छाया हुआ है । अर्थ-व्यवसथा ठप है । इस चुनौती का सामना करने के लिए कोई रणनीति नहीं है । यह सरकार संकट का पूरा बोझ आम जनता पर डालने की कोशिश कर रही है । राषट्रीय हितों से मुख मोड़कर, सरकार एक के बाद दूसरा ऐसा कदम उठा रही है जो मंहगाई को बढ़ा रहा है तथा आर्थिक मंदी का कारण बन रहा है । सरकार बिना सोचे समझे रोजमर्रा की जिन्दगी के लिए जरुरी वस्तुओं की कीमतों को बढ़ाती जा रही है । यह केवल औद्दोगिक क्षेत्र का संगठित मजदूर वर्ग ही नहीं है जो पूरी तरह से प्रभावित हुआ है बल्कि वह ठेके पर काम करने वाले मजदूर अन आधिकारिक और दिहाड़ी मजदूर हैं जिन पर बहुत बुरा असर पड़ा है । जबकि औद्दोगिक मजदूर जो संगठित है उनको अपने कानून सम्म्त अधिकारों, बोनस तथा मजदूरी को बढ़वाने से बंचित कर दिया जाना तो निश्चित है नहीं असंगठित मजदूर वर्ग को काम के नुकसान, मजदूरी में कटौती, कम से कम मजदूरी का भुगतान नहीं किए जाने और कानूनी बकायों की नामंजूरी के माध्यम से बहुत अधिक निर्दयी असर को झेलना पड़ेगा ।    
बैंकिंग क्षेत्र भी इसका अपवाद नहीं है । सरकारी क्षेत्र के बैंकों में सरकार की ईक्विटी कैपीटल को कम करने और घटाने की कोशिश की जा रही है । सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए सरकार सामाजिक बैंक के दायरे को संकुचित करने के लिए विलय तथा समेकित करने की बात करती है । परन्तु उसी सांस में सरकार निजी क्षेत्र की बैंकिंग मो उत्साहित करने की बात करती है । बड़े-बड़े औद्दिगिक घरानों को अपने निजी बैंक शुरु करने के लिए लाइसेंस देने की बात की जा रही है  धनवान ऋणकर्ताओं को सुविधा देने के लिए उनके बड़े-बड़े कर्जों को बटटे खाते डाला जा रहा है । ग्रामीण शाखाओं को बंद करने और ग्रामीण बैंकिंग को बाहर से कारोबारी प्रतिनिधियों के माध्यम से निजी हाथों में दिया जा रहा है । कारपोरेट ऋण बढ़ रहे हैं । बैंक, राष्र्ट्रीयकरण और उद्देश्यों से दूर जा रहे हैं ।                    
  
बहुत से जरूरी मुद्दे जैसे कि मृतक कर्मचारियों के परिवारों को आर्थिक सहायता, काम करने का समय निर्धारित करना, बैंकों की पैंशन स्कीम का केंद्रीय सरकारी पैंशन स्कीम की तरह सुधार करना, सप्ताह में पांच दिन की बैंकिग रखने पर बहुत समय से बिचार विमर्श नहीं किया गया है।  स्थायी कार्यों को भी निजी हाथों में सौंपने के प्रयास तेज़ी से किये जा रहे हैं । ये सब कदम स्थायी नौकरियों के लिए तथा पढ़े लिखे नौजवानों के लिए नौकरियों के अवसरों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है । यह बैंक के ग्राहकों के हित के लिए भी बहुत नुक्सानदायक है । बैंकों को और अधिक मजबूत करने के जरुरत है । लेकिन इसके वजाय सरकार बैंकों की कार्यप्रणाली में कुछ और ही तरह के संशोधन करने के लिए तत्पर है  जैसे कि पब्लिक सैक्टर बैंकों का निजीकरण, सरकारी पूंजी को घटाना, पब्लिक सैक्टर बैंकों का विलय, निजी व्यवसाय प्रतिनिधि स्कीम को लागू करना । बैंक देश्वासियों की मेहनत की कमाई का प्रतिनिधित्व करते हैं ।  इसलिए बैंकों को मजबूत बनाने की जरुरत है तांकि यू एस ए और दूसरे देशों में बैंकों को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है हमारे बैंकों को उनका सामना नही करना पड़े । लेकिन बदकिस्मति से सरकार हमारे बैंकिंग क्षेत्र को मुक्त छोड़ देने पर तुली हुई है । नई शाखायें खोलने की बजाय पहले से खुली शाखायें जो कि बहुत बेहतर ढ़ंग से कार्य कर रहीं हैं, उन्हें बंद करने की कोशिशें की जा रहीं हैं ।

युनाईटेड फारम के नेताओं ने आगे कहा कि "जो लोगों पर आक्रमण करते हैं उनकी निंदा करो" । सरकारी अत्याचार को रोकने के लिए प्रति रक्षा के उपाय करो । सरकार द्वारा की जा रही अत्याचारी कार्रवाइयों के विरुद्ध सामूहिक हस्तक्षेप करने के लिए यही ठीक समय है । हर जगह क्रोध प्रकट किया जा रहा है । मंहगाई की आग में जल रहे लोग सरकार तथा इसके सभी तंत्रों को रोकने और सरकार की नितियों का विरोध करने वाले लोगों की शक्ति  को दिखाने के लिए सभी  सड़कों पर उतर आये हैं ।  बैंकिंग उद्दोग पूरी तरह से बंद है । सरकार का काम बंद रहना चाहिए । सरकार के आक्रमण का प्रतिरोध करने तथा लोगों के हित में मांगो को मनवाने का एक मात्र यही तरीका है । एकता की शक्ति ने एक अवसर प्रदान किया है, इसका संकट को प्रतिरोध की एक नई लहर में बदल देने  का पूरा उपयोग किया जाना चाहिए।

नरेश गौड़, 
कन्विनर 
         

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